शनिवार, 30 अप्रैल 2011

सद्व्यवहार

         दूसरों के लिए हम वैसा ही व्यवहार करें, जैसा हम स्वयं अपने लिए अपेक्षा करते हैं, बाहर से  देखने में सभी आदमी एक जैसे  हैं, मनुष्य की बौद्धिक एवं शारीरिक उच्चता नापने की कसौटी उसका व्यवहार ही है.
         सद्व्यवहार आकर्षण का केंद्र है तो दुर्व्यवहार विकर्षण का कारण है. शिष्टता हमारे सामाजिक जीवन का मधुर रस है तो अशिष्टता सार्वजानिक जीवन का सबसे बड़ा कलंक है.  व्यक्तिगत हो या सार्वजानिक सभी जगहों में शिष्टता एवं सद्व्यवहार की प्रशंशा होती है. प्रायः छोटी -छोटी आदतों से हमारे चरित्र की अशिष्टता प्रकट हो जाती है जिन मामूली बातों की हम उपेक्षा करते हैं उन्ही के द्वारा दूसरे हमे अशिष्ट कहते हैं.
          शिष्टता हमारी प्राथमिक आवश्यकता है. कर्म, वाणी, व्यवहार, पोशाक और सामाजिक जीवन में दूसरे की सुबिधा का ध्यान रखना हमारी शिष्टता की कसौटियां हैं. शिष्टाचार ही सफलता की कुंजी है.
          परस्पर प्रेम सद्भाव नेह और उत्तम संबंधों का मूल सद्व्यवहार ही है. मनुष्य जैसा व्यवहार करता है वैसी ही उन्नति करता है. मानव को प्रेम मय व्यवहार करना चाहिए इससे मानवता की प्रतिष्ठा बढती है. ज्ञान, बल, धन, की सार्थकता मानवोचित सद्व्यवहार पर निर्भर है. वार्तालाप से मनुष्य की उच्चता या नीचता प्रकट होती है. वार्तालाप में शुभ, मंगलकारी, शिष्ट, मधुर, कर्णप्रिय एवं संयमित शब्दों का प्रयोग करना चाहिए


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