मंगलवार, 9 अगस्त 2011

मुसाफिर

तनहाइयाँ और ये गम के साये,
कोई इस हाल में किस तरह मुस्कुराये,
दोस्ती आँधियों की अंधेरों से है,
आरजू का दिया कोई कैसे जलाये,
चलन है शराफत पे तोहमत का अब,
दिल में रह जाती हैं नेक दिल की सदायें,
है काँटों भरी ये राहे - हयात,
इनसे दामन मुसाफिर कैसे  बचाए,

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