बुधवार, 23 मई 2012

उजालों की चाह में

निकला था मैं सफ़र में उजालों की चाह में,
लेकर हसीन ख़वाब हजारों निगाह में,
लेकिन मेरी किस्मत   को ये मंजूर नहीं था,
हमको मिले तमाम अँधेरे ही राहमें,
ये देख कर दुनिया को हो जाएगी तसल्ली,
ए दिल चला जा तू ग़मों की पनाह में, 

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