pankaj
गुरुवार, 13 अक्टूबर 2011
कितनी नायब ये निशानी है
बहते दरिया सी रवानी है
आपकी मेरी जिंदगानी है
कितने हैं ख्वाब और तमन्नाएँ,
बीत जाये तो एक कहानी है,
गोद में खेलती है कुदरत के,
कितनी नायब ये निशानी है,
सोमवार, 10 अक्टूबर 2011
सूना-सूना ये समां है
सूना-सूना ये समां है,
कोई न हमदम दरमियाँ है,
ये अँधेरे चारसू हैं,
खोया-ख़ोया आसमां है,
पीर को समझे न कोई,
बेदर्द कितना ये जहाँ है,
किसको मैं कबतक पुकारूँ,
कोई नहीं मेरा यहाँ है,
मजधार में है ये सफीना,
साहिल नजर में अब कहाँ है,
मेरे होने के शबब में,
कोई नहीं बाकी निशां है,
आबाद था जो आज तक,
ख़ाली मेरा वो मकां है,
नई पोस्ट
पुराने पोस्ट
मुख्यपृष्ठ
सदस्यता लें
संदेश (Atom)