सोमवार, 10 अक्तूबर 2011

सूना-सूना ये समां है

सूना-सूना ये समां है,
कोई न हमदम दरमियाँ है,
ये अँधेरे चारसू हैं,
खोया-ख़ोया आसमां है,
पीर को समझे  न कोई,
बेदर्द कितना ये जहाँ है,
किसको मैं कबतक पुकारूँ,
कोई नहीं मेरा यहाँ है,
मजधार में है ये सफीना,
साहिल नजर में अब कहाँ है,
मेरे होने के शबब में,
कोई नहीं बाकी निशां है,
आबाद था जो आज तक,
ख़ाली मेरा वो मकां है,

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