गुरुवार, 17 सितंबर 2015

श्री नारायण

श्री लक्ष्मीनारायणाभ्यां नमः
उमामहेश्वराभ्यां नमः
श्री सिद्धिविनायक नमो नमः
श्वेताङ्गं श्वेतवस्त्रं सितकुसुमगनैः पूजितं श्वेतगंधेयः,क्षीराबधौ रत्नदीपैह सुरवरतिलकं रत्नसिंहासनस्थम्।
दोर्भि: पाशाङ्कुशाब्जाभयधरमनिशं चंद्रमौलिम् त्रिनेत्रं,ध्यायेच्छान्त्यर्थमीशं गणपतिममलं श्रीसमेतं प्रसन्नम्।

बिना भगवान की कृपा के सुकर्म भी सम्भव नहीं भगवान जिसको ऊँचा उठाना चाहते हैं उससे ऊँचे कर्म करवाते हैं जिसे नीचे धकेलना चाहते हैं उससे नीच कर्म करवाते हैं यहाँ तक कि भगवत्प्राप्ति भी भगवत्कृपा के बिना सम्भव नहीं वे स्वयं साधन और साध्य दोनों हैं।

श्री हरि ही सम्पूर्ण देहधारियों की आत्मा,नियामक और स्वतंत्र कारण हैं उनके चरणतल ही मनुष्यों और प्राणियों के एकमात्र आश्रय हैं और उन्हीं से संसार में सबका कल्याण हो सकता है।

सर्वारिष्टहरं सुखैकरमणं शान्त्यास्पदं भक्तिदं स्मृत्या ब्रह्मपदप्रदं स्वरसदं प्रेमास्पदं शाश्वतम्।
मेघश्यामशरीरमच्युतपदं पीताम्बरं सुन्दरं श्रीकृष्णं सततं ब्रजामि शरणं कायेन वाचा धिया।।
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ॐ श्री कृष्णाय नमः
ॐ श्री माधवाय नमः
सर्वेषां स्वस्तिर्भवतु
सर्वं मङ्गलं अस्तु
सादर अभिनंदनम्
वन्देमातरम्
ॐ शांतिः

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