बुधवार, 27 जून 2012

अंत में मिलकर सागर में सागर की लहरें बनती हैं,

नदियाँ अपने उर में लेकर  पथ की यादें बहती  है,
अंत में मिलकर सागर में सागर की लहरें बनती हैं,
किसकी हमें प्रतीक्षा है किसलिए यहाँ दुःख सहना है,
राहें सारी इस जीवन की एक ही मंजिल पर मिलती हैं,
माया जीवन की मृगमरीचिका प्राणों को है भरमाती,
नयी-नयी अभिलाषाएं नित बनती और बिगड़ती हैं,
आतुर है कितना चंचल मन पाने को अनजानी मंजिल,
बस इसी लालसा में सांसे संघर्ष हमेशा करती हैं,

है स्थूल शरीर और है क्षणभंगुर ये जीवन,
प्रत्येक आत्मा इस जग में नित नूतन रूप बदलती हैं,
अस्तित्व है मानव जीवन का पानी के बुलबुले जैसा,
मिल जाती हैं फिर पानी में बूदें जो जीवन बनती हैं,
करने लगता है मन मयूर ये झूम-झूम कर मधुर गान,
जब भी  धरातल पर इसके  आशा की किरणें पड़ती हैं,
स्पर्श हर्ष का जब झोंका मन अंतर को करता है,
अभिलाषाएं रह-रहकर  फिर सजती और सवरती हैं,
दुर्गम पथ  के आने पर मत हत-उत्साहित हो जाना,
नतमस्तक दृढ़ निश्चय के आगे बाधाएँ रहती हैं,
जो भी होना होता है वह होकर ही रहता है,
कहाँ नियति के आगे सबकी इच्छाएं  चलती हैं,

शुक्रवार, 15 जून 2012

हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे सदा,

वो  जबसे खेयालों  में आने लगे हैं,
बेखुदी में हम गुनगुनाने लगे हैं,
जब भी  मिलते थे खामोश रहते थे अब,
वो  मुझे देखकर मुस्कुराने लगे हैं,
एक  खूबसूरत सा वो अक्स बनके,
धीरे-धीरे से दिल में  समाने लगे हैं,
किससे है किसको  ज्यादा मुहब्बत  यहाँ,
वो हमें हम उन्हें आजमाने लगे हैं,
किनारों पर दिल के खेयाल आपके,
लहरों की तरह से आने-जाने लगे हैं,
इतना  बेचैन  मन था न  पहले कभी,
रात-दिन वो हमें याद आने लगे हैं,
हाय खामोश आखों की गहराइयाँ,
उन झीलों में हम दिल डुबाने लगे हैं,
प्यार का ये तुम्हारे नशा हल्का-हल्का,
बिन पिए अब कदम लड़खड़ाने लगे हैं,
न होना कभी हमसे नाराज तुम,
मनाने में तुमको ज़माने लगे हैं,
हम तुम्हारे हैं और तुम हमारे सदा,
सारे भौरे येही गीत गाने लगे  हैं,
 

अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं

 
अधरं मधुरं वदनं मधुरं नयनं मधुरं हसितं मधुरं !
हृदयं मधुरं गमनं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
वचनं मधुरं चरितं मधुरं वसनं मधुरं वलितं मधुरं !
चलितं मधुरं भ्रमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
वेणुर्मधुरम रेणुर्मधुरम पानिर्मधुरम पादो मधुरो !
... नित्यम मधुरं सख्यं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
गीतं मधुरं पीतं मधुरं भुक्तं मधुरं सुप्तं मधुरं !
रूपं मधुरं तिलकं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
करणं मधुरं तरणं मधुरं हरनाम मधुरं सुप्तं मधुरं !
वमितं मधुरं शमितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
गुंजा मधुरं माला मधुरा यमुना मधुरा वीची मधुरा !
सलिलं मधुरं कमलं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
गोपी मधुरा लीला मधुरा युक्तं मधुरं मुक्तं मधुरं !
दृष्टं मधुरं शिष्टं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं !!
गोपा मधुरा गावो मधुरा यष्टिर्मधुरा सृष्टिर्मधुरा !
दलितं मधुरं फलितं मधुरं मधुराधिपते रखिलं मधुरं

मंगलवार, 12 जून 2012

आँधियों में चिरागों को जलना पड़ेगा,

सितम ये हमें कब तक  सहना पड़ेगा,
एक न एक  दिन हमको अड़ना पड़ेगा,
है  मतलब परस्ती सभी के  दिलों में,
ठोकरें खा के खुद ही संभलना पड़ेगा,
आज उल्फत का है  सामना नफरतों से,
आँधियों में चिरागों को जलना पड़ेगा,
हैं राहों में कांटे बहुत जिन्दगी के,
देखकर हर कदम हमको रखना पड़ेगा,
लाख  पर्दों में छिप जाइएगा मगर,
एक न एक दिन तो निकलना पड़ेगा,
हर   इंसा जो इंसा  का दुश्मन बना है,
ये फितरत उसे अब बदलना पड़ेगा,

भ्रष्टाचार

भ्रष्टाचार समाप्त हो ऐसी इच्छा जनता में नहीं है सब किसी न किसी तरह इसे फलता फूलता देखना चाहते हैं धनवान बनने की होड़ भ्रष्टाचार को ऊर्जा प्रदान करती है, दिन बा दिन हम अंपने संसाधनों को बढ़ाते जा रहे हैं इसके लिए हमें धन की जरुरत होती है जिसे हम ईमानदारी पूर्वक नहीं अर्जित कर सकते हैं,हमारी बढती जरूरतें ही हमें भ्रष्ट बनाती हैं, हम ज्ञानार्जन की अपेक्षा धनार्जन को महत्त्व दे रहे हैं, कदाचित ये... प्रवृत्ति एक दिन इस पूरेतंत्र को विफल कर देगी सभी लोग इस तंत्र को विफल करने में लगे हैं वे जिस वृक्ष की छाया में फल फूल रहे है उसकी ही जड़ों को नुकसान पंहुचा रहे हैं, एसा कुछ भी नहीं हो रहा है जिससे इस तंत्र को मजबूती और पोषण मिले. भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए किसी बड़े आन्दोलन और क्रांति की आवश्यकता नहीं है बल्कि आत्ममंथन की आवश्यकता है कि हम जिस रास्ते पर जा रहे हैं क्या वह उचित है क्या मात्र हमारे ही धनवान होने से सामाजिक व्यवस्था और लोकतंत्र मजबूत हो जायेगा

मुश्किल है अपना मेल प्रिये

मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम ऍम ऐ फर्स्ट डिविजन हो, मैं हुआ मेट्रिक फेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम फौजी अफसर की बेटी , मैं तो किसान का बेटा हूँ तुम रबडी खीर मलाई हो, मै तो सत्तू सपरेटा हूँ तुम ऐसी घर में रहती हो, मैं पेड के नीचे लेटा हूँ तुम नई मार...ुती लगती हो, मै स्कूटर लम्ब्रेटा हूँ इस कदर अगर हम छुप छुप कर, आपस में प्यार बढ़ाएँगे तो एक रोज तेरे डेडी, अमरीश पुरी बन जाएँगे सब हड्डी पसली तोड़ मुझे वो भिजवा देंगे जेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम अरब देश की घोड़ी हो, मैं हूँ गधे की नाल प्रिये तुम दीवाली का बोनस हो, मै भूखों की हड़ताल प्रिये तुम हीरे जडी तश्तरी हो, मैं एल्युमिनिअम का थाल प्रिये तुम चिकन सूप बिरयानी हो, मैं कंकड वाली दाल प्रिये तुम हिरन चौकड़ी भरती हो, मै हूँ कछुए की चाल प्रिये तुम चंदन वन की लकड़ी हो, मैं हूँ बबूल की छाल प्रिये मै पके आम सा लटका हूँ मत मारो मुझे गुलेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये मै शनी देव जैसा कुरूप, तुम कोमल कन्चन काया हो मै तन से मन से कांशी राम, तुम महा चंचला माया हो तुम निर्मल पावन गंगा हो, मैं जलता हुआ पतंगा हूँ तुम राज घाट का शांति मार्च, मै हिन्दू मुस्लिम दंगा हूँ तुम हो पूनम का ताजमहल, मै काली गुफा अजन्ता की तुम हो वरदान विधाता का, मैं गलती हूँ भगवंता की तुम जेट विमान की शोभा हो, मैं बस की ठेलमठेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम नई विदेशी मिक्सी हो, मै पत्थर का सिलबट्टा हूँ तुम ए. के. सैतालिस जैसी, मैं तो एक देसी कट्टा हूँ तुम चतुर राबडी देवी सी, मै भोला भाला लालू हूँ तुम मुक्त शेरनी जंगल की, मै चिड़िया घर का भालू हूँ तुम व्यस्त सोनिया गाँधी सी, मैं वीपी सिंह सा खाली हूँ तुम हँसी माधुरी दीक्षित की, मैं हवलदार की गाली हूँ कल जेल अगर हो जाये तो, दिलवा देना तुम ‘बेल’ प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये मैं ढाबे के ढाँचे जैसा, तुम पाँच सितार होटल हो मैं महुए का देसी ठर्रा, तुम ‘रेड लेबल’ की बोतल हो तुम चित्रहार का मधुर गीत, मै कृषि दर्शन की झाड़ी हूँ तुम विश्व सुन्दरी सी कमाल, मैं ठेलिया छाप कबाड़ी हूँ तुम सोनी का मोबाइल हो, मैं टेलीफोन वाला चोगा तुम मछली मानसरोवर की, मैं हूँ सागर तट का घोंघा दस मंजिल से गिर जाऊँगा, मत आगे मुझे धकेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये तुम सत्ता की महारानी हो, मैं विपक्ष की लाचारी हूँ तुम हो ममता, जयललिता सी, मैं कुआँरा अटल बिहारी हूँ तुम तेंदुलकर का शतक प्रिये, मैं फालो-ऑन की पारी हूँ तुम गेट्ज, मारुती , सैंट्रो हो, मैं लेलैंड की लारी हूँ मुझको रेफ्री ही रहने दो, मत खेलो मुझसे खेल प्रिये मुश्किल है अपना मेल प्रिये, ये प्यार नही है खेल प्रिये……

सोमवार, 11 जून 2012

कैसे हालातों में रहता आज का गरीब है,

दिल ये खुशनसीब है जो आपके क़रीब है,
वर्ना जिन्दगी में मेरा गम मेरा नसीब है,

आसुवों-ही -आसुवों में लम्हा-लम्हा मिट रहा,
यहाँ हर कोई रकीब है न कोई हबीब है,

 कोई अगर उम्मीद की लौ दिल में मेरे  जल गयी,
हवाएं तेज हो जाती हैं कितनी बात ये अजीब है,

है हर तमन्ना मिट रही और जिंदगी सिमट रही,
कैसे हालातों में रहता आज का गरीब है,

कि दाना खाक में मिलकर गुलेगुलजार होता है

mita de apni hasti ko agar ba martaba chahe
ki dana khak mein milkar guleguljar hota hai,

मिटा दे अपनी  हस्ती को अगर बा मर्तबा चाहे,
कि दाना खाक में मिलकर गुलेगुलजार होता है

बुधवार, 30 मई 2012

अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है

अजब मौसम है, मेरे हर कद़म पे फूल रखता है
मुहब्बत में मुहब्बत का फरिश्ता साथ चलता है

मैं जब सो जाऊँ, इन आँखों पे अपने होंठ रख देना
यक़ीं आ जायेगा, पलकों तले भी दिल धड़कता है

हर आंसू में कोई तसवीर अकसर झिलमिलाती है
तुम्हें आँखें बतायेंगी, दिलों में कौन जलता है

बहुत से काम रुक जाते हैं, मैं बाहर नहीं जाता
तुम्हारी याद का मौसम कहाँ टाले से टलता है

मुहब्बत ग़म की बारिश हैं, ज़मीं सर-सब्ज होती है
बहुत से फूल खिलते हैं, जहां बादल बरसता है

कभी फुरसत मिले तो पानी की तहरीरों को पढ़ लेना ,
हर एक दरिया हजारों साल का अफ़साना लिखता है,

तुम्हारे शहर के सारे दिये तो सो गए लेकिन,
हवा से पूछना दहलीज पे ये कौन जलता है,
    व व

नाखुदा मेरे सफीने का जब खुदाया है

दिल के आँगन में गम का साया है,
जो था अपना वो अब पराया है,
उलझ गया हूँ गमे जिंदगी की उलझन में,
ये किस मक़ाम पे हमें वक़्त ले के आया है,
सफ़र तमाम इस एतबार में गुजरा,
नाखुदा मेरे सफीने का जब खुदाया है,
तिनके-तिनके से बनाये था जिस नशेमन को,
उम्मीदे-चरागाँ ने उसे जलाया है,
कहाँ गयी वो तबस्सुम गुलों के चेहरों से,
बड़ी हसरत से जिन्हें शाख पर सजाया है,
दिले नादाँ कुसूर है तेरा,
बेवफा पे तुझे क्यों प्यार आया है,
कोई तो आके सुने दस्ताने-गम मेरा,
कि कहर कितना घटाओं ने बरपाया है,
था जो रोशन चिराग हसरत का,
गम की आंधी ने उसे बुझाया है,

बुधवार, 23 मई 2012

उजालों की चाह में

निकला था मैं सफ़र में उजालों की चाह में,
लेकर हसीन ख़वाब हजारों निगाह में,
लेकिन मेरी किस्मत   को ये मंजूर नहीं था,
हमको मिले तमाम अँधेरे ही राहमें,
ये देख कर दुनिया को हो जाएगी तसल्ली,
ए दिल चला जा तू ग़मों की पनाह में, 

सोमवार, 2 अप्रैल 2012

फिराक

इश्के तनहा से हुई आबाद  कितनी मंजिलें,
इक मुसाफिर कारवां-दर-कारवां बनता गया,
बात निकले बात से जैसे वो था तेरा बयां,
नाम तेरा दास्ताँ-दर-दास्ताँ बनता गया,
वारदाते-दिल को दिल ही में जगह देते रहे,
हर हिसाबे-गम हिसाबे-दोस्तां बनता गया,
फिराक

मंगलवार, 13 मार्च 2012

क्या था क्या हो गया आज इन्सान देखो

क्या था क्या हो गया आज इन्सान देखो,
हर जगह है यहाँ भेरियाधसान  देखो,
चंद पैसों की खातिर हैं बिक जाते लोग,
सौ में नब्बे यहाँ पर हैं बेईमान  देखो,
हो गयी है बिकाऊ हर एक चीज अब,
है बाजार में सारा सामान देखो,
छल कपट द्वेष ईर्ष्या और चालें चतुर,
स्वार्थ की पूर्ति में है घमासान देखो,
बिन इजाजत के पत्ता भी हिलता नहीं,
शहर में गुनाहों के भगवान् देखो,
स्वयं का कभी पेट भरता नहीं,
करेंगे क्या औरों का कल्याण देखो,
शहर रिश्तें नातों का वीरान हैं,
यहाँ कैसा गुजरा है तूफ़ान देखो,
कब कौन न जाने किसको मिटा दे,
छिनना जिन्दगी कितना आसान देखो,
हक जताने की सब बातें बेमानी हैं,
चंद दिन के हैं हम लोग मेहमान देखो,
बाकी रह  जाएँगी हसरतें आपकी,
न होंगे सभी पूरे अरमान देखो,
मात-पिता बोझ जैसे लगें,
थे जिनके लिए वे परेशां देखो,
कुछ भी करने में संकोच बिलकुल नहीं,
इन्सान बना आज हैवान  देखो,
भाई मौसेरे हैं चोर और चोर सब,
आपस में इनकी जानो-पहचान देखो,
क्या बनाया था इंसान क्या हो गया,
है  khuda  apni rachna pe hairaan  देखो,