नदियाँ अपने उर में लेकर पथ की यादें बहती है,
अंत में मिलकर सागर में सागर की लहरें बनती हैं,
अंत में मिलकर सागर में सागर की लहरें बनती हैं,
किसकी हमें प्रतीक्षा है किसलिए यहाँ दुःख सहना है,
राहें सारी इस जीवन की एक ही मंजिल पर मिलती हैं,
माया जीवन की मृगमरीचिका प्राणों को है भरमाती,
नयी-नयी अभिलाषाएं नित बनती और बिगड़ती हैं,
आतुर है कितना चंचल मन पाने को अनजानी मंजिल,
बस इसी लालसा में सांसे संघर्ष हमेशा करती हैं,
राहें सारी इस जीवन की एक ही मंजिल पर मिलती हैं,
माया जीवन की मृगमरीचिका प्राणों को है भरमाती,
नयी-नयी अभिलाषाएं नित बनती और बिगड़ती हैं,
आतुर है कितना चंचल मन पाने को अनजानी मंजिल,
बस इसी लालसा में सांसे संघर्ष हमेशा करती हैं,
है स्थूल शरीर और है क्षणभंगुर ये जीवन,
प्रत्येक आत्मा इस जग में नित नूतन रूप बदलती हैं,
अस्तित्व है मानव जीवन का पानी के बुलबुले जैसा,
मिल जाती हैं फिर पानी में बूदें जो जीवन बनती हैं,
प्रत्येक आत्मा इस जग में नित नूतन रूप बदलती हैं,
अस्तित्व है मानव जीवन का पानी के बुलबुले जैसा,
मिल जाती हैं फिर पानी में बूदें जो जीवन बनती हैं,
करने लगता है मन मयूर ये झूम-झूम कर मधुर गान,
जब भी धरातल पर इसके आशा की किरणें पड़ती हैं,
स्पर्श हर्ष का जब झोंका मन अंतर को करता है,
अभिलाषाएं रह-रहकर फिर सजती और सवरती हैं,
दुर्गम पथ के आने पर मत हत-उत्साहित हो जाना,
नतमस्तक दृढ़ निश्चय के आगे बाधाएँ रहती हैं,
जो भी होना होता है वह होकर ही रहता है,
कहाँ नियति के आगे सबकी इच्छाएं चलती हैं,
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